बात इतनी सी है, मेरे फ़साने में.......शीला माहार.....22/07/2017
बात इतनी सी है, मेरे फ़साने में,
उम्र सारी बीती है, तुझे भुलाने में !!
कभी कुछ कर्ज़ लिया था, जो साहुकार से,
चूकी न एक पाई भी, उम्र बीती चुकाने में !!
बीज बोऐ थे, बहार देखने की ख़ातिर,
करूँ क्या, जो जन्म ले लिया काँटों ने !!
वो कौन था मेरा, इक लम्हे की हँसी दे गया जो,
लाख कोशिशें कीं, न आई कोई बात समझने में !!
एक अजनबी सा चेहरा, रहता है आँखों में हरदम,
रूबरू कभी आता नहीं, ढूँढ के हारी सारे ज़माने में !!
ये कैसी कशिश लिखी है, नम आँखों में उसकी,
अब्र छलका नहीं, दामिनी कौंधीं बहुत छलकाने में !!
एक ख़ूबसूरत सा मँज़र, झूलता है अँगड़ाई में मेरी,
केतकी, बेला, चमेली सँवर जाते हैं, मेरी निग़ाहों में !!
क्यूँ देखते हो हिकारत से, मैं कोई मुल्ज़िम तो नहीं,
इश्क़ करती हूँ,कोई ख़ता तो नहीं मुहब्बत करने में !!
शीला माहार
२२.०२.२०१७
बात इतनी सी है, मेरे फ़साने में,
उम्र सारी बीती है, तुझे भुलाने में !!
कभी कुछ कर्ज़ लिया था, जो साहुकार से,
चूकी न एक पाई भी, उम्र बीती चुकाने में !!
बीज बोऐ थे, बहार देखने की ख़ातिर,
करूँ क्या, जो जन्म ले लिया काँटों ने !!
वो कौन था मेरा, इक लम्हे की हँसी दे गया जो,
लाख कोशिशें कीं, न आई कोई बात समझने में !!
एक अजनबी सा चेहरा, रहता है आँखों में हरदम,
रूबरू कभी आता नहीं, ढूँढ के हारी सारे ज़माने में !!
ये कैसी कशिश लिखी है, नम आँखों में उसकी,
अब्र छलका नहीं, दामिनी कौंधीं बहुत छलकाने में !!
एक ख़ूबसूरत सा मँज़र, झूलता है अँगड़ाई में मेरी,
केतकी, बेला, चमेली सँवर जाते हैं, मेरी निग़ाहों में !!
क्यूँ देखते हो हिकारत से, मैं कोई मुल्ज़िम तो नहीं,
इश्क़ करती हूँ,कोई ख़ता तो नहीं मुहब्बत करने में !!
शीला माहार
२२.०२.२०१७